- कृषि की दृष्टि से भारत एक महत्त्वपूर्ण
- देश है। इसकी दो-तिहाई जनसंख्या कृषि कार्यों में संलग्न है।
- कृषि एक प्राथमिक क्रिया है जो हमारे लिए अधिकांश खाद्यान्न उत्पन्न करती है।
- खाद्यान्नों के अतिरिक्त यह विभिन्न उद्योगों के लिए कच्चा माल भी पैदा करती है।
- इसके अतिरक्ति, कुछ उत्पादों जैसे चाय, कॉफी, मसाले इत्यादि का भी निर्यात किया जाता है।
कृषि के प्रकार
- कृषि हमारे देश की प्राचीन आर्थिक क्रिया है।
- पिछले हजारों वर्षों के दौरान भौतिक पर्यावरण, प्रौद्योगिकी और सामाजिक-सांस्कृतिक रीति-रिवाजों के अनुसार खेती करने की विधियों में सार्थक परिवर्तन हुआ है।
- जीवन निर्वाह खेती से लेकर वाणिज्य खखेती तक कृषि के अनेक प्रकार हैं।
- वर्तमान समय में भारत के विभिन्न भागों में निम्नलिखित प्रकार के कृषि तंत्र अपनाए गए हैं।
प्रारंभिक जीविका निर्वाह कृषि
- इस प्रकार की कृषि भारत के कुछ भागों में अभी भी की जाती है।
- प्रारंभिक जीवन निर्वाह कृषि भूमि के छोटे टुकड़ों पर आदिम कृषि औजारों जैसे लकड़ी के हल, डाओ (dao) और खुदाई करने वाली छड़ी तथा परिवार श्रम की मदद से की जाती है।
- इस प्रकार की कृषि प्रायः मानसून, मृदा की प्राकृतिक उर्वरता और फसल उगाने के लिए अन्य पर्यावरणीय परिस्थितियों की उपुयक्तता पर निर्भर करती है।
- यह 'कर्तन दहन प्रणाली' (slash and burn) कृषि है।
- किसान जमीन के टुकड़े साफ करके उन पर अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए अनाज व अन्य खाद्य फसलें उगाते हैं।
- जब मृदा की उर्बरता कम हो जाती है तो किसान उस भूमि के टुकड़े से स्थानांतरित हो जाते हैं और कृषि के लिए भूमि का दूसरा टुकड़ा साफ करते हैं।
- कृषि के इस प्रकार के स्थानांतरण से प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा मिट्टी की उर्वरता शक्ति बढ़ जाती है।
- देश के विभिन्न भागों में इस प्रकार की कृषि को विभिन्न नामों से जाना जाता है।
- उत्तर-पूर्वी राज्यों असम, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड में इसे 'झूम' कहा जाता है;
- मणिपुर में पामलू (pamlou) और छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले और अंडमान निकोबार द्वीप समूह में इसे 'दीपा' कहा जाता है।
झूम खेती
- इस कृषि को विश्व के अलग अलग भागों में अन्य नामों से जाना जाता है:
- मैक्सिको और मध्य अमेरिका में 'मिल्पा'
- वेनेजुएला में 'कोनुको',
- ब्राजील में 'रोका',
- मध्य अफ्रीका में 'मसोले',
- इंडोनेशिया में लदान्ग'
- वियतनाम में 'रे' के नाम से जाना जाता है।
भारत में झूम खेती के प्रादेशिक नाम
- मध्य प्रदेश में 'बेबर या दहिया,
- आंध्रप्रदेश में पांड' अथवा 'पंडा',
- ओडिशा में 'पामाड़ाबी' या 'कोमान' मा 'मरीगाँ'
- पश्चिम घाट में 'कुमारी',
- दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में 'वालरे' या 'वाल्टरे
- हिमालयन क्षेत्र में खिल
- झारखंडन में कुरुवा
- उत्तर पूर्वी प्रदेशों में 'झूम' आदि।
गहन जीविका कृषि
- इस प्रकार की कृषि उन क्षेत्रों में की जाती है जहाँ भूमि पर जनसंख्या का दबाव अधिक होता है।
- यह श्रम-गहन खेती है जहाँ अधिक उत्पादन के लिए अधिक मात्रा में जैव- रासायनिक निवेशों और सिंचाई का प्रयोग किया जाता है।
- भूस्वामित्व में विरासत के अधिकार के कारण पीढ़ी दर पीढ़ी जोतों का आकार छोटा और अलाभप्रद होता जा रहा है और किसान वैकल्पिक रोजगार न होने के कारण सीमित भूमि से अधिकतम पैदावार लेने की कोशिश करते हैं।
- अतः कृषि भूमि पर बहुत अधिक दबाव है।
वाणिज्यिक कृषि
- इस प्रकार की कृषि के मुख्य लक्षण आधुनिक निवेशों जैसे अधिक पैदावार देने वाले बीजों, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग से उच्च पैदावार प्राप्त करना है।
- कृषि के वाणिज्यीकरण का स्तर विभिन्न प्रदेशों में अलग-अलग है।
- उदाहरण के लिए हरियाणा और पंजाब में चावल वाणिज्य की एक फसल है परंतु ओडिशा में यह एक जीविका फसल है।
रोपण कृषि
- यह भी एक प्रकार की वाणिज्यिक खेती है।
- इस प्रकार की खेती में लंबे-चौड़े क्षेत्र में एकल फसल बोई जाती है।
- रोपण कृषि, उद्योग और कृषि के बीच एक अंतरापृष्ठ (interface) है।
- रोपण कृषि व्यापक क्षेत्र में की जाती है जो अत्यधिक पूँजी और श्रमिकों की सहायता से की जाती है।
- इससे प्राप्त सारा उत्पादन उद्योग में कच्चे माल के रूप में प्रयोग होता है।
- भारत में चाय, कॉफी, रबड़, गन्ना, केला इत्यादि महत्त्वपूर्ण रोपण फसले हैं।
- असम और उत्तरी बंगाल में चाय, कर्नाटक में कॉफी वहाँ की मुख्य रोपण फसलें हैं।
- रोपण कृषि में उत्पादन बिक्री के लिए होता है इसलिए इसके विकास में परिवहन और संचार साधन से संबंधित उद्योग और बाजार महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
शस्य प्रारूप
भारत में तीन शस्य ऋतुएँ हैं,
- रबी
- खरीफ
- जायद।
रबी फसलें
- इन फसलों को शीत ऋतु में अक्तूबर से दिसंबर के मध्य बोया जाता है और ग्रीष्म ऋतु में अप्रैल से जून के मध्य काटा जाता है।
- गेहूँ, जौ, मटर, चना और सरसों कुछ मुख्य रबी फसलें हैं।
- ये फसलें देश के विस्तृत भाग में बोई जाती हैं उत्तर और उत्तरी पश्चिमी राज्य जैसे- पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू- कश्मीर, उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश गेहूँ और अन्य रबी फसलों के उत्पादन के लिए महत्त्वपूर्ण राज्य हैं।
- शीत ऋतु में शीतोष्ण पश्चिमी विक्षोभों से होने वाली वर्षा इन फसलों के अधिक उत्पादन में सहायक होती है।
- पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ भागों में हरित क्रांति की सफलता भी उपर्युक्त रबी फसलों की वृद्धि में एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
खरीफ फसलें
- इन फसलों को देश के विभिन्न क्षेत्रों में मानसून के आगमन के साथ बोई जाती हैं और सितंबर-अक्तूबर में काट ली जाती हैं।
- इस ऋतु में बोई जाने वाली मुख्य फसलों में चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, तुर (अरहर), मूँग, उड़द, कपास, जूट, मूँगफली और सोयाबीन शामिल हैं।
- चावल की खेती मुख्य रूप से असम, पश्चिमी बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल और महाराष्ट्र विशेषकर कोंकण तटीय क्षेत्रों, उत्तर प्रदेश और बिहार में की जाती है।
- पिछले कुछ वर्षों में चावल पंजाब और हरियाणा में बोई जाने वाली महत्त्वपूर्ण फसल बन गई है।
- असम, पश्चिमी बंगाल और ओडिशा में धान की तीन फसलें ऑस, अमन और बोरो बोई जाती हैं।
जायद
- रबी और खरीफ फसल ऋतुओं के बीच ग्रीष्म ऋतु मैं बोई जाने वाली फसल को जायद कहा जाता है।
- जायद ऋतु में मुख्यत तरबूज, खरबूजे, खीरे, सब्जियों और चारे की फसलों की खेती की जाती है।
- गन्ने की फसल को तैयार होने में लगभग एक वर्ष लगता है।
मुख्य फसलें
- मिट्टी, जलवायु और कृषि पद्धति में अंतर के कारण देश के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक प्रकार की खाद्य और अखाद्य फसलें उगाई जाती हैं।
- भारत में उगाई जाने वाली मुख्य फसलें चावल, गेहूँ, मोटे अनाज, दालें, चाय, कॉफी, गन्ना, तिलहन, कपास और जूट इत्यादि हैं।
चावल
- भारत में अधिकांश लोगों का खाद्यान्न चावल है।
- हमारा देश चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है।
- यह एक खरीफ की फसल है जिसे उगाने के लिए उच्च तापमान (25° सेल्सियस से ऊपर) और अधिक आर्द्रता (100 सेमी. से अधिक वर्षा) की आवश्यकता होती है।
- कम वर्षा वाले क्षेत्रों में इसे सिंचाई करके उगाया जाता है।
- चावल उत्तर और उत्तर-पूर्वी मैदानों, तटीय क्षेत्रों और डेल्टाई प्रदेशों में उगाया जाता है।
- नहरों के जाल और नलकूपों की सघनता के कारण पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ कम वर्षा वाले क्षेत्रों में चावल की फसल उगाना संभव हो पाया है।
गेहूँ
- गेहूँ भारत की दूसरी सबसे महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है।
- जो देश के उत्तर और उत्तर-पश्चिमी भागों में पैदा की जाती है।
- रबी की फसल को उगाने के लिए शीत ऋतु और पकने के समय खिली धूप की आवश्यकता होती है।
- इसे उगाने के लिए समान रूप से वितरित 50 से 75 सेमी. वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।
- देश में गेहूँ उगाने वाले दो मुख्य क्षेत्र हैं उत्तर-पश्चिम में गंगा-सतलुज का मैदान और दक्कन का काली मिट्टी वाला प्रदेश।
- पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, और राजस्थान के कुछ भाग गेहूँ पैदा करने वाले मुख्य राज्य हैं।
मोटे अनाज (Millets)
- ज्वार, बाजरा और रागी भारत में उगाए जाने वाले मुख्य मोटे अनाज हैं।
- इन्हे मोटा अनाज कहा जाता है परंतु इनमें पोषक तत्त्वों की मात्रा अत्यधिक होती है।
- उदाहरणतया, रागी में प्रचुर मात्रा में लोहा, कैल्शियम, सूक्ष्म पोषक और भूसी मिलती है।
- क्षेत्रफल और उत्पादन की दृष्टि से ज्वार देश की तीसरी महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है।
- यह फसल वर्षा पर निर्भर होती है।
- अधिकतर आर्द्र क्षेत्रों में उगाए जाने के कारण इसके लिए सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।
- इसके प्रमुख उत्पादक राज्य महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश हैं।
बाजरा
- यह बलुआ और उथली काली मिट्टी पर उगाया जाता है।
- राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और हरियाणा इसके मुख्य उत्पादक राज्य हैं।
रागी
- शुष्क प्रदेशों की फसल है और यह लाल, काली, बलुआ, दोमट और उथली काली मिट्टी पर अच्छी तरह उगायी जाती है।
- रागी के प्रमुख उत्पादक राज्य कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, सिक्किम, झारखंड और अरुणाचल प्रदेश हैं।
मक्का
- यह एक ऐसी फसल है जो खाद्यान्न व चारा दोनों रूप में प्रयोग होती है।
- यह एक खरीफ फसल है जो 21° सेल्सियस से 27° सेल्सियस तापमान में और पुरानी जलोढ़ मिट्टी पर अच्छी प्रकार से उगायी जाती है।
- बिहार जैसे कुछ राज्यों में मक्का रबी की ऋतु में भी उगाई जाती है।
- आधुनिक प्रौद्योगिक निवेशों जैसे उच्च पैदावार देने वाले बीजों, उर्वरकों और सिंचाई के उपयोग से मक्का का उत्पादन बढ़ा है।
- कर्नाटक, मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना मक्का के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।
दालें
- भारत विश्व में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक तथा उपभोक्ता देश है।
- शाकाहारी खाने में दालें सबसे अधिक प्रोटीन दायक होती हैं।
- तुर (अरहर), उड़द, मूंग, मसूर, मटर और चना भारत की मुख्य दलहनी फसले हैं।
- दालों को कम नमी की आवश्यकता होती है और इन्हें शुष्क परिस्थितियों में भी उगाया जा सकता है।
- फलीदार फसलें होने के नाते अरहर को छोड़कर अन्य सभी दालें वायु से नाइट्रोजन लेकर भूमि की उर्वरता को बनाए रखती हैं।
- इन फसलों को आमतौर पर अन्य फसलों के आवर्तन (rotating) में बोया जाता है।
- भारत में मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, और कर्नाटक दाल के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।
खाद्यान्नों के अलावा अन्य खाद्य फसलें
गन्ना
- गन्ना एक उष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय फसल है।
- यह फसल 21" सेल्सियस से 27° सेल्सियस तापमान और 75 सेमी. से 100 सेमी. वार्षिक वर्षा वाली उष्ण और आर्द्र जलवायु में बोई जाती है।
- कम वर्षा वाले प्रदेशों में सिंचाई की आवश्यकता होती है।
- इसे अनेक मिट्टियों में उगाया जा सकता है तथा इसके लिए बुआई से लेकर कटाई तक काफी शारीरिक श्रम की आवश्यकता होती है।
- ब्राजील के बाद भारत गन्ने का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
- यह चीनी, गुड़, खांडसारी और शीरा बनाने के काम आता है।
- उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, पंजाब और हरियाणा गन्ना के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।
तिलहन
- 2018 में भारत विश्व में चीन के बाद दूसरा बड़ा तिलहन उत्पादक देश था।
- सन् 2018 में तोरिया के उत्पादन में भारत का विश्व में कनाडा और चीन के बाद तीसरा स्थान था।
- देश में कुल बोए गए क्षेत्र के 12 प्रतिशत भाग पर कई तिलहन की फसलें उगाई जाती हैं।
- मूँगफली, सरसों, नारियल, तिल, सोयाबीन, अरंडी, बिनौला, अलसी और सूरजमुखी भारत में उगाई जाने वाली मुख्य तिलहन फसलें हैं।
- इनमें से अधिकतर खाद्य हैं और खाना बनाने में प्रयोग किए जाते हैं।
- परंतु इनमें से कुछ तेल के बीजों को साबुन, प्रसाधन (श्रृंगार का सामान) और उबटन उद्योग में कच्चे माल के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।
मूँगफली
- मूँगफली खरीफ की फसल है तथा देश में मुख्य तिलहनों के कुल उत्पादन का आधा भाग इसी फसल से प्राप्त होता है।
- गुजरात मूँगफली का प्रमुख उत्पादक राज्य है।
- अलसी और सरसों रबी की फसलें हैं। तिल उत्तरी भारत में खरीफ की फसल है और दक्षिणी भारत में रबी की।
- अरंडी, खरीफ और रबी दोनों ही फसल ऋतुओं में बोया जाता है।
चाय
- चाय की खेती रोपण कृषि का एक उदाहरण है।
- यह एक महत्त्वपूर्ण पेय पदार्थ की फसल है जिसे शुरुआत में अंग्रेज भारत में लाए थे।
- आज अधिकतर चाय बागानों के मालिक भारतीय हैं।
- चाय का पौधा उष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु, ह्यूमस और जीवांश युक्त गहरी मिट्टी तथा सुगम जल निकास वाले ढलवाँ क्षेत्रों में भलीभाँति उगाया जाता है।
- चाय की झाड़ियों को उगाने के लिए वर्ष भर कोष्ण, नम और पालारहित जलवायु की आवश्यकता होती है।
- वर्ष भर समान रूप से होने वाली वर्षा की बौछारें इसकी कोमल पत्तियों के विकास में सहायक होती हैं।
- चाय एक श्रम-सघन उद्योग है।
- इसके लिए प्रचुर मात्रा में सस्ता और कुशल श्रम चाहिए।
- इसकी ताजगी बनाए रखने के लिए चाय की पत्तियाँ बागान में ही संसाधित की जाती हैं।
- चाय के मुख्य उत्पादक क्षेत्रों में असम, पश्चिमी बंगाल में दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी जिलों की पहाड़ियाँ, तमिलनाडु और केरल हैं।
- इनके अलावा हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, मेघालय, आंध्र प्रदेश और त्रिपुरा आदि राज्यों में भी चाय उगाई जाती है।
- सन् 2018 में भारत विश्व में चीन के बाद दूसरा बड़ा चाय उत्पादक देश था।
कॉफी
- भारतीय कॉफ़ी अपनी गुणवत्ता के लिए विश्वविख्यात है।
- हमारे देश में अरेबिका किस्म की कॉफ़ी पैदा की जाती है जो आरम्भ में यमन से लाई गई थी।
- इस किस्म की कॉफी की विश्व भर में अधिक माँग है।
- इसकी कृषि की शुरुआत बाबा बूदन पहाड़ियों से हुई और आज भी इसकी खेती नीलगिरि की पहाड़ियों के आस पास कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में की जाती है।
बागवानी फसलें
- सन् 2018 में भारत का विश्व में फलों और सब्जियों के उत्पादन में चीन के बाद दूसरा स्थान था।
- भारत उष्ण और शीतोष्ण कटिबंधीय दोनों ही प्रकार के फलों का उत्पादक है।
- भारतीय फलों जिनमें महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बंगाल के आम, नागपुर और चेरापूँजी (मेघालय) के संतरे, केरल, मिजोरम, महाराष्ट्र, और तमिलनाडु के केले, उत्तर प्रदेश और बिहार की लीची, मेघालय के अनन्नास, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र के अंगूर तथा हिमाचल प्रदेश और जम्मू व कश्मीर के सेब, नाशपाती, खूबानी और अखरोट की विश्वभर में बहुत माँग है।
- भारत का मटर फूलगोभी, प्याज, बंदगोभी, टमाटर, बैंगन और आलू उत्पादन में प्रमुख स्थान है।
अखाद्य फसलें
रबड़
- रबड़ भूमध्यरेखीय क्षेत्र की फसल है परंतु विशेष परिस्थितियों में उष्ण और उपोष्ण क्षेत्रों में भी उगाई जाती है।
- इसको 200 सेमी. से अधिक वर्षा और 25° सेल्सियस से अधिक तापमान वाली नम और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है।
- रबड़ एक महत्त्वपूर्ण कच्चा माल है जो उद्योगों में प्रयुक्त होता है।
- इसे मुख्य रूप से केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, अंडमान निकोबार द्वीप समूह और मेघालय में गारो पहाड़ियों में उगाया जाता है।
रेशेदार फसलें
- कपास, जूट, सन और प्राकृतिक रेशम भारत में उगाई जाने वाली चार मुख्य रेशेदार फसलें हैं।
- इनमें से पहली तीन मिट्टी में फसल उगाने से प्राप्त होती हैं और चौथा रेशम के कीड़े के कोकून से प्राप्त होता है
- जो मलबरी पेड़ की हरी पत्तियों पर पलता है।
- रेशम उत्पादन के लिए रेशम के कीड़ों का पालन 'रेशम उत्पादन' (Sericulture) कहलाता है।
कपास
- भारत को कपास के पौधे का मूल स्थान माना जाता है।
- सूती कपड़ा उद्योग में कपास एक मुख्य कच्चा माल है।
- कपास उत्पादन में भारत का विश्व में चीन के बाद दूसरा स्थान है ।
- दक्कन पठार के शुष्कतर भागों में काली मिट्टी कपास उत्पादन के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
- इस फसल को उगाने के लिए उच्च तापमान, हल्की वर्षा या सिंचाई, 210 पाला रहित दिन और खिली धूप की आवश्यकता होती है।
- यह खरीफ की फसल है और इसे पककर तैयार होने में 6 से 8 महीने लगते हैं।
- महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश कपास के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।
जूट
- जूट को सुनहरा रेशा कहा जाता है।
- जूट की फसल बाढ़ के मैदानों में जलनिकास वाली उर्वरक मिट्टी में उगाई जाती है जहाँ हर वर्ष बाढ़ से आई नई मिट्टी जमा होती रहती है।
- इसके बढ़ने के समय उच्च तापमान की आवश्यकता होती है।
- पश्चिम बंगाल, बिहार, असम और ओडिशा तथा मेघालय जूट के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।
- इसका प्रयोग बोरियाँ, चटाई, रस्सी, तंतु व धागे, गलीचे और दूसरी दस्तकारी की वस्तुएँ बनाने में किया जाता है।
प्रौद्योगिकीय और संस्थागत सुधार
- भारत में कृषि हजारों वर्षों से की जा रही है।
- प्रौद्योगिकी और संस्थागत परिवर्तन के अभाव में लगातार भूमि संसाधन के प्रयोग से कृषि का विकास अवरुद्ध हो जाता है तथा इसकी गति मंद हो जाती है।
- सिंचाई के साधनों का विकास होने के उपरांत भी देश के एक बहुत बड़े भाग में अभी भी किसान खेती-बाड़ी के लिए मानसून और भूमि की प्राकृतिक उर्वरता पर निर्भर हैं।
- लोगों को आजीविका प्रदान करने वाली कृषि में कुछ गंभीर तकनीकी एवं संस्थागत सुधार लाने की आवश्यकता है।
- स्वतंत्रता के पश्चात् देश में संस्थागत सुधार करने के लिए जोतों की चकबंदी, सहकारिता तथा जमींदारी आदि समाप्त करने को प्राथमिकता दी गयी।
- प्रथम पंचवर्षीय योजना में भूमि सुधार मुख्य लक्ष्य था।
- भूमि पर पुश्तैनी अधिकार के कारण यह टुकड़ों में बँटती जा रही थी जिसकी चकबंदी करना अनिवार्य था।
- भूमि सुधार के कानून तो बने परंतु इनके लागू करने में ढील की गई।
- 1960 और 1970 के दशकों में भारत सरकार ने कई प्रकार के कृषि सुधारों की शुरुआत की।
- पैकेज टेक्नोलॉजी पर आधारित हरित क्रांति तथा श्वेत क्रांति (ऑपरेशन फ्लड) जैसी कृषि सुधारं के लिए कुछ रणनीतियाँ आरंभ की गई थी।
- परंतु इसके कारण विकास कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित रह गया।
- इसलिए 1980 तथा 1990 के दशकों में व्यापक भूमि विकास कार्यक्रम शुरू किया गया जो संस्थागत और तकनीकी सुधारों पर आधारित था।
- इस दिशा में उठाए गए कुछ महत्त्वपूर्ण कदमों में सूखा, बाढ़, चक्रवात, आग तथा बीमारी के लिए फसल बीमा के प्रावधान और किसानों को कम दर पर ऋण सुविधाएँ प्रदान करने के लिए ग्रामीण बैंकों, सहकारी समितियों और बैंकों की स्थापना सम्मिलित थे।
- किसानों के लाभ के लिए भारत सरकार ने 'किसान क्रेडिट कार्ड और व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना (पीएआईएस) भी शुरू की है।
- इसके अलावा आकाशवाणी और दूरदर्शन पर किसानों के लिए मौसम की जानकारी के बुलेटिन और कृषि कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं।
- किसानों को बिचौलियों और दलालों के शोषण से बचाने के लिए न्यूनतम सहायता मूल्य और कुछ महत्त्वपूर्ण फसलों के लाभदायक खरीद मूल्यों की सरकार घोषणा करती है।
भूदान-ग्रामदान
- महात्मा गांधी ने विनोबा भावे को अपना अध्यात्मिक उत्तराधिकारी घोषित किया था।
- उनकी गांधी जी के ग्राम स्वराज अवधारणा में भी गहरी आस्था थी।
- गांधी जी की शहादत के बाद उनके संदेश को लोगों तक पहुँचाने के लिए विनोबा भावे ने लगभग पूरे देश की पदयात्रा की।
- एक बार जब वे आंध्र प्रदेश के एक गाँव पोचमपल्ली में बोल रहे थे तो कुछ भूमिहीन गरीब ग्रामीणों ने उनसे अपने आर्थिक भरण-पोषण के लिए कुछ भूमि माँगी।
- विनोबा भावे ने उनसे तुरंत कोई वायदा तो नहीं किया परंतु उनको आश्वासन दिया कि यदि वे सहकारी खेती करें तो वे भारत सरकार से बात करके उनके लिए जमीन मुहैया करवाएँगे।
- अचानक श्री राम चन्द्र रेड्डी उठ खड़े हुए हुए और उन्होंने 80 भूमिहीन ग्रामीणों को 80 एकड़ भूमि बाँटने की पेशकश की।
- इसे 'भूदान' के नाम से जाना गया।
- बाद में विनोबा भावे ने यात्राएँ की और अपना यह विचार पूरे भारत में फैलाया।
- कुछ जमींदारों ने, जो अनेक गाँवों के मालिक थे, भूमिहीनों को पूरा गाँव देने की पेशकश भी की।
- इसे 'ग्रामदान' कहा गया। परंतु कुछ जमींदारों ने तो भूमि सीमा कानून से बचने के लिए अपनी भूमि का एक हिस्सा दान किया था।
- विनोबा भावे द्वारा शुरू किए गए इस भूदान ग्रामदान आंदोलन को 'रक्तहीन क्रांति' का भी नाम दिया गया।